Sunday 16 December 2018

भारत के बड़े नोट नेपाल में अवैध: इंडो-नेपाल मित्रता खतरे में

2016 में हुए विमुद्रीकरण के कारण भारत के विदेशी संबंध पहले ही खराब होते दिखायी दिए थे। नोटबंदी से रातों रात 500 और 1000 के नोट अवैध कर दिए गए थे जिनको बैंक में जमा करने का समय दिया गया था। भारत के अतिरिक्त भारतीय मुद्रा नेपाल, भूटान तथा ज़िम्बाब्वे जैसे कई अन्य देशों में भी थी जो बैंकों में जमा नही हो पायी।


नेपाल में सबसे अधिक भारतीय मुद्रा थी क्योंकि वहाँ सीधे-सीधे मुद्रा का प्रयोग किया जाता था। नोटबंदी से बड़ी मात्रा में 1000 तथा 500 के नोट नेपाल में फँसे रह गए थे जिसको बदलने की माँग की गई थी पर भारतीय सरकार ने कहा कि जितना समय भारतीयों को मुद्रा बैंकों में जमा करने हेतू मिला था उसी समय सबको कराना था। इस वजह से वहाँ भारतीय मुद्रा फँसने से लोगों को भारी नुकसान उठाना पड़ा।
इस सबके बावजूद नेपाल तथा भारत के व्यापारी नई भारतीय मुद्रा में व्यापार कर ही रहे थे कि नेपाल सरकार ने भरतीय मुद्रा के 200, 500 तथा 2000 के नोटों को अवैध घोषित कर दिया। सूचना मंत्री गोकुल बसकोटा ने 13 दिसंबर वीरवार को औपचारिक तौर पर इसकी घोषणा की। इस फैसले को भले ही नेपाल सरकार ने नेपाल के लिए सोचा हो कि अगर कल फिर नोटबंदी जैसे फैसले भारत लेता है तो नेपाल उससे प्रभावित न हो। पर वहीं व्यापारियों का वो तबका जो 2016 की नोटबंदी के भयावह फैसले से बबड़ी मुश्किल से उभर पाया था तथा फिर से आम व्यापार करने लगा था वह अब फिर से परेसानी में है। इस फैसले से भारत मे काम कर रहे नेपाली लोग जो साल अथवा 2-3 साल में अपने घर पैसा जोड़कर ले जाते थे उनके समक्ष भी एक बड़ा संकट आ गया है।
आर्थिक संकट के अतिरिक्त इसे भारत-नेपाल के संबंध में आयी दरार के रूप में भी देखा जा रहा है। भारत- नेपाल की मित्रता दशकों से चली आ रही है। भारत के लोग नेपाल तथा नेपाल के लोग भारत बिना किसी कागज़ी कार्यवाही के यात्रा अथवा कार्य कर सकते हैं। भारत मे लोक सेवा की परीक्षा में नेपाल तथा भूटान के लोगों को भी बैठने की अनुमति है। ऐसी स्थिति में मुद्रा को अवैध करना दोनो देशों की मित्रता पर एक प्रश्न चिह्न लगा देता है।

Monday 6 August 2018

सोशलिस्ट युवजन सभा के राष्ट्रिय अध्यक्ष नीरज कुमार से विशाल जोशी और प्रदीप साह की बातचीत

प्रश्न : आप सोशलिस्ट युवजन सभा के अध्यक्ष हैं | समाजवाद में आपकी गहरी रुची हैं | अगस्त क्रांति (भारत छोड़ो आन्दोलन) में समाजवादियों कि क्या भूमिका रही हैं ?
उत्तर : इस क्रांति का मूलमंत्र महात्मा गांधी ने दिया था - 'करो या मरो' | उसमें आचार्य नरेन्द्र देव का सहयोग उन्हें मिला था क्योंकि प्रस्ताव तैयार करते समय वे भी वर्धा में थे | लोहिया 9th अगस्त को ही भूमिगत हो गए थे और अपनी गिरफ़्तारी तक आन्दोलन चलाते रहे | जयप्रकाश नारायण जान हथेली पर रखकर हजारीबाग जेल से फरार हुए और अगस्त क्रांति के हीरो बने 1942 का आन्दोलन आज़ादी के आन्दोलन में और सोशलिस्ट आन्दोलन में एक उच्चतम बिंदु था | उसमें नौजवान और खासकर सोशलिस्ट उभर कर आए और अपना पूरा दायित्व निभाया | इस आन्दोलन के जो महत्वपूर्ण नेता थे, वे सोशलिस्ट ही थे, वे चाहें अचुत्य पटवर्धन हों, डॉ. लोहिया हों, युसूफ मेहर अली हों, अरुणा आसफ अली हों या जयप्रकाश नारायण हों | 
प्रश्न : सोशलिस्ट पार्टी और उसकी युवा इकाई सोशलिस्ट युवजन सभा अगस्त क्रांति दिवस पर हर साल आन्दोलन करती हैं इसका क्या कारण हैं ?
उत्तर : राष्ट्रिय आन्दोलन और खासकर उसके अंतिम संघर्ष के मूल्यों, आदर्शों तथा मान्यताओं को अगर प्रसारित नहीं तो कम-से-कम बचाए रखने कि जिम्मेदारी समाजवादियों पर हैं | महात्मा गाँधी ने और उसके बाद भारत के समाजवादियों ने आजादी की लड़ाई को केवल अंग्रेजी हुकूमत के खात्में तक ही सीमित नहीं रखा था, बल्कि एक सुनहले समाज का सपना देखा था, उसका एक मोटा खाका खिंचा था, एक जीवन-दार्शन प्रस्तुत करने की कोशिश की थी | सबका आधार था - आत्मनिर्भरता और सादगी | उनके कल्पना में निहित था कि भारत के नागरिक ज्ञान-विज्ञान तथा प्रौद्योगिकी का विकास अतृप्त एवं असीमित इच्छाओं को संतुष्ट करने और उन्हें बढाने के दुश्चक्र में फंसने के लिए नहीं बल्कि उन्हें तृप्त तथा सीमित करने के लिए करेंगे | स्वाभाविक तौर पर वह व्यवस्था विकेन्द्रित होती, प्रत्येक नागरिक की आवश्यक जरूरतें पूरी होती और नागरिकों के बीच जीवन स्तर का अंतर न्यूनतम होता | वैसी व्यवस्था में एक ऐसे मनुष्य का सृजन होता जो केवल अपनी इकाई के हित को ही सर्वोपरि नहीं मानता बल्कि अपने को समाज का अभिन्न अंग मानकर सामाजिक दायित्व पूरा करने के लिए बराबर रुची लेता |
आजादी की इस अंतिम लड़ाई के 76वें साल में स्थिति ठीक उलटी है | गाँव की आत्मनिर्भरता के बदले भारतीय अर्थव्यवस्था को विश्व-अर्थव्यवस्था के साथ समायोजन के नाम पर फिर गुलाम बनाने का मुहीम छेड़ दिया गया है | पूरी नीति और कार्यक्रम अधिक-से-अधिक एक-चौथाई लोगों की सुख-सुविधा के लिए बनाए जा रहे हैं | विडम्बना यह हैं कि बाकी तीन-चौथाई लोग उन सुख-सुविधाओं की मृग-मरीचिका के पीछे पागल होकर दौड़ रहे हैं | परिणामतः पूरा समाज मानसिक तौर पर इस आपा-धापी में लगा है और जाने-अनजाने इस व्यवस्था को मजबूत कर रहा है | जो व्यक्ति या समूह इसकी असलियत समझते भी हैं, उनमें या तो निराशा घर कर रही है, या इतने बिखरे हैं कि कोई कारगर कदम नहीं उठा पा रहे हैं | ऐसी स्थिति में सोशलिस्ट पार्टी और सोशलिस्ट युवजन सभा का दायित्व बनता हैं कि आज़ादी के मूल्यों विचारों के माध्यम से आज के समस्या को जनता के सामने लायें यही काम हम लोग कर रहे हैं |
प्रश्न : वर्त्तमान शिक्षा व्यवस्था पर आप क्या कहना चाहेंगे ?
उत्तर : सोशलिस्ट युवजन सभा मानती है कि उच्च शिक्षा के बाजारिकरण की नींव सन 1999 में भारत सरकार ने यूनेस्को को पेश अपने पर्चे में डाल दी थी इस पर्चे में तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री ने दावा किया था कि उच्च शिक्षा सार्वजनिक हित के लिए नहीं हैवरन यह महज  व्यक्तिगत हित का'बिकाऊ मालहैइसलिए इसकी किमत छात्रों को व्यक्तिगत तौर पर ही चुकानी चाहिएन कि सरकार को |आगेसन 2000 में प्रधानमंत्री की'आर्थिक मामलों की परिसदको पेश अम्बानी-बिड़ला रपट ने कहा कि सरकार को उच्च शिक्षा को पैसा देना बंद करके इसे पूरी तरह बाज़ार के हवाले कर देना चाहिए और बाज़ार तय करेगा कि क्या पढाया जाएकैसे पढाया जाए यानी ज्ञान पर बाज़ार का पूरा कब्जा हो जाएगा इस क्रम को आगे बढाते हुए भारत सरकार ने अगस्त 2005 में विश्व व्यापार संगठन के पटल पर उच्च शिक्षा का अपना'संसोधित प्रस्तावरख दिया यानी उच्च शिक्षा के दरवाजे बाज़ार के लिए खोलने की पेशकश कर दी हम चाहते हैं कि केंद्र सरकार से उच्च शिक्षा से सम्बंधित विश्व व्यापार संगठन के प्रस्ताव से  हट जाए, नहीं तो सरकार को ही हट जाना चाहिए | क्योंकि केंद्र में इसके बने रहने का अर्थ होगा भारत की उच्च शिक्षा को उन विदेशी कॉर्पोरेट घरानों को बेच वैश्विक पूंजी के निर्देशन और हित में कार्य कर रहे हैं और भारत के युवाओं के हितों के विरुद्ध हैं, जिसका दुष्परिणाम राष्ट्र की संप्रभुता के लिए चुनौती पैदा होना तथा छात्रों को उच्च शिक्षा से वंचित करना होगा |निजिकरण एवं बजारिकरण से शिक्षा न केवल गरिबों और पहले से जाति,धर्मलिंग व विकलांगता के कारण वंचित तबकों के हाथ से निकल जाएगीबल्कि जो इसका खर्चा उठा सकते हैं उन्हें भी केवल ना मात्र की शिक्षा ही मिलेगी ऐसा इसलिए होगा क्योंकि बेतहाशा बाजारिकरण के चलते शिक्षा अपने मूल उद्देश्य से भटक जाएगी और साथ ही पाठ्यक्रमविषयवस्तु व शिक्षणपद्धति में भी भारी गिरावट होगीशिक्षा इतनी महँगी हो जाएगी कि मध्यम वर्ग के लिए भी इसका बोझ ढोना मुश्किल हो जाएगा | WTO के मातहत शिक्षा में लोकतांत्रिक व सामाजिक न्याय के एजेंडे को दरकिनार कर दिया जाएगा और इसके अन्तर्गत अब तक किए गए प्रावधानो को जैसे कि आरक्षण,होस्टलस्कलरशिपफ़ीस में छूट या मुफ़्त शिक्षा आदिके लिए भी कोई जगह नहीं बचेगी|
राजग के नेतृत्व में मौजूदा केंद्र सरकार नई शिक्षा नीति को लागू कर रही है, जिसकी बुनियाद में कॉर्पोरेटीकरण, केन्द्रीयकरण और फिरकापरस्ती लाना हैं | शिक्षा संस्थानों के प्रबंधन और माली स्त्रोतों को बदला जा रहा है, ताकि शिक्षा को मुनाफे का व्यवसायिक धंधा बनाया जा सके | जोर-शोर से पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) मॉडल को बढाया जा रहा है; सरकारी खर्च से चलने वाले स्कूल बंद किए जा रहे हैं, उन्हें एक दुसरे में जोड़कर उनकी संख्या कम की जा रही हैं | स्कूली और उच्च-शिक्षा दोनों के लिए बजट में आबंटन में बुरी तरह कटौती की जा रही है और फीस कई गुना बढ़ा दी जा रही है | अपने खर्च से पढ़ाई वाले कोर्स जबरन लागू किए जा रहे हैं | शिक्षा संस्थानों में लोकतान्त्रिक विमर्श की जगह कम हो रही है |
सोशलिस्ट पार्टी का मानना हैं कि शिक्षा ऐसी हो जो आवाम को पूरी तरह मुफ्त और बिना किसी भी तरह के भेदभाव के मिल सके -चाहे वह वर्ग, पितृसत्ता, मजहब, जुबान, अंचल, विकलांगता या और किसी भी तरह का ऐतिहासिक भेदभाव क्यों न हो और जो मौजूदा समाज को बदलकर लोकतान्त्रिक, धर्मनिरपेक्ष, बराबरी पर आधारित, न्यायपूर्ण, प्रबुद्ध और मानवीय बना सके | हमारी यह लड़ाई सरकारी खर्च से चलने वाली सार्वजनिक शिक्षा में कटौती, मुनाफाखोरी, निजीकरण और व्यापार बन चुकी शिक्षा व्यवस्था के खिलाफ हैं |
प्रश्न : सोशलिस्ट पार्टी जो 9th अगस्त को आन्दोलन कर रही हैं 'शिक्षा और रोजगार दो वर्ना गद्दी छोड़ दो' में शिक्षा के साथ-साथ रोजगार को भी रखा हैं | बेरोजगारी कि समस्या बढती जा रही हैं इसपर आप क्या कहेंगे |
उत्तर : देखिये नवउदारवादी 'सुधारों' ने भारतीय समाज में वैश्विक पूंजी को बेलगाम अधिकाधिक घुसपैठ करने दिया, जिससे संवैधानिक सिद्धांत और मूल्य औंधे मुंह गिर पड़े और सामाजिक इन्साफ के सरोकारों को धीरे-धीरे छोड़ दिया गया और निरंतर डिजिटल टेक्नोलॉजी के बलबूते 'रोजगार-विहीन आर्थिक बढ़त' के वैश्वीकरण के महामंत्र ने शासक वर्गों की जमात को मंत्रमुग्ध कर दिया और गुलाम बना डाला | जिसका नतीजा आज के युवाओं को बेरोजगारी के रूप में देखने को मिलता हैं |
आईएलओ के अनुसार वर्ष 2018 में भारत में बेरोजगारों की संख्या 1.86 करोड़ रहने का अनुमान हैं | साथ ही इस संख्या के अगले साल 2019 में 1.89 करोड़ तक बढ़ जाने का अनुमान लगाया गया है | आंकड़ो के अनुसार, भारत दुनिया के सबसे ज्यादा बेरोजगारों का देश बनता जा रहा हैं | इस समय देश की 11 प्रतिशत आबादी बेरोजगार हैं | ये वे लोग हैं जो काम करने लायक हैं, लेकिन उनके पास रोजगार नहीं हैं | बीते तीन से चार साल में बेरोजगारी की दर में जबरदस्त इजाफा हुआ है | मोदी सरकार के श्रम मंत्रालय के श्रम ब्यूरो के सर्वे से भी सामने आया है कि बेरोजगारी दर पिछले पांच साल के उच्च स्तर पर पहुँच गई है |
सरकारी क्षेत्र में रोजगार हासिल करने के लिए बेरोजगार युवाओं को आज कितनी मशक्कत करनी पड़ रही हैं, यह किसी से छिपी नहीं है | पढ़े-लिखे लोगों में  बेरोजगारी के हालात ये हैं कि चतुर्थ श्रेणी के कर्मचारी के पद के लिए प्रबंधन की पढ़ाई करने वाले और इंजीनियरिंग के डिग्रीधारी भी आवेदन करते हैं | देश में बेरोजगारी की दर कम किए बिना विकास का दावा करना कभी भी न्याय सांगत नहीं कहा जा सकता | इसलिए हम कहते हैं कि 'हर हाथ को काम दो वर्ना गद्दी छोड़ दो' |
प्रश्न : अंत में आप क्या कहना चाहेंगे ?
उत्तर : जिस आर्थिक नीति पर आज वाक्-युद्ध छिड़ा हुआ हैं, उसको पुष्ट करने में आज के प्रत्येक दल ने योगदान दिया है | जिस उदार नीति, बहुराष्ट्रीय कंपनियों को निमंत्रण पर कागजी शेर दहाड़ रहे हैं, वह रातों-रात तो आ नहीं टपकी | कुछ तो हमें साम्राज्यवाद से विरासत में मिली, कुछ को विशेष प्रौद्योगिकी के चयन के कारण बहुत पहले न्योतना पड़ा और अस्सी-नब्बे के दशक में हमनें निर्यात तथा विकास दर बढाने के नाम पर यह काम शुरू कर दिया | आज जो विपक्षी दलों के बड़े-बड़े नेता हैं, वे भी इसमें भागीदार रहे हैं | आर्थिक सोच में असामना रहते हुए भी भाजपा अपना अस्तित्व बनाए रखने में कामयाब हुआ हैं क्योंकि उसका आधार सांप्रदायिक टकराव से पुख्ता होता हैं | जब उसकी आर्थिक नीतियों के फलस्वरूप अधिसंख्य लोगों का मोहभंग होगा तभी उसका ह्रास होगा | आज की स्थिति में गांधी, लोहिया, जयप्रकाश तथा आचार्य नरेंद्र देव की परंपरा और राष्ट्रीय आन्दोलन के मूल्यों को आगे बढाए बिना लड़ाई मजबूत नहीं हो सकती | इसलिए मेरा निवेदन हैं कि सोशलिस्ट पार्टी जो 9th अगस्त को आन्दोलन कर रही हैं 'शिक्षा और रोजगार दो वर्ना गद्दी छोड़ दो' का हिस्सा बनिए | यह आपकी आवाज हैं और सभी हाथ मिलेंगे तभी आजादी के मूल्यों को मजबूती मिलेगी |

Friday 3 August 2018

कवि दिवस : 3 अगस्त

 आज के दिन यानी 3 अगस्त को हिंदी सहित्य जगत में 'कवि दिवस' के रुप में मनाया जाता है। किंतु 3 अगस्त को ही कवि दिवस में मनाने का कारण क्या हैं ? तो इसका कारण यह है कि आज ही के दिन 3 अगस्त 1886 में साहित्य जगत के प्रसिद्ध कवि मैथिलीशरण गुप्त का जन्म हुआ था । इनका जन्म स्थल चिरगाँव , उत्तर प्रदेश हैं और वहीं से उन्होंने प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की थी। हिन्दी साहित्य के इतिहास में वे खड़ी बोली के प्रथम महत्वपूर्ण कवि है। उन्होंने हिन्दी , बंगला , संस्कृत तीनों भाषाओं के साहित्य का अध्ययन कर ज्ञान प्राप्त किया है, और उन्होंने इन भाषाओं में कई रचनाएँ भी की हैं । गुप्त जी के काव्य में राष्ट्रीयता और गांधीवाद की प्रधानता है।उनकी कृति भारत - भारती जो 1912 में स्वतंत्रता संग्राम के समय प्रकाशित हुई थी और इसीलिए महात्मा गांधी ने गुप्त जी को 'राष्ट्रकवि'  की उपाधि से नवाज़ा था।
  भारत भारती में देश की वर्तमान दुर्दशा पर क्षोभ प्रकट करते हुए उन्होंने देश के अतीत का अत्यंत गौरव और श्रध्दा के साथ गुणगान किया है।
 जो कि स्वतंत्रता सैनानियों के भीतर नई ऊर्जा प्रवाहित करने के कार्य में सफल रहा । गुप्त जी ने प्रबन्ध काव्य तथा मुक्तक काव्य दोनों में रचनाएँ की है। उनके द्वारा की गई रचनाएँ साहित्य जगत के लिए अनमोल है , जिसके सम्मान में उनकी जयंती के दिन को "कवि दिवस" के रुप में मनाया जाता है।



                                अंजली चौहान

Thursday 2 August 2018

असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर : जिम्मेदारी, सावधानी और संयम की जरूरत

असम में अवैध रूप से रहने वाले बंग्लादेशी नागरिकों की मौजूदगी की समस्या काफी जटिल और पुरानी है. असम में बांग्लादेशी घुसपैठ के विरुद्ध अस्सी के दशक में जब वहां के छात्रों ने आंदोलन किया था तो उनका समर्थन पूरे देश के समाजवादियों और गांधीवादियों ने किया था। तब वह आंदोलन धर्मनिरपेक्ष था और उसका जोर असमिया नागरिकों की अस्मिता बचाने पर था। हालांकि उसमें बांग्लाभाषियों का विरोध था, लेकिन आंदोलन में असमिया समाज के सभी तबके के लोगों ने हिस्सा लिया था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने उसे सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश की और जब वे ब्रह्मपुत्र घाटी में एक रैली में गईं तो वहां नारा भी लगा था कि 'हाथ में बीड़ी मुहं में पान असम बनेगा पाकिस्तान'। वह सब कांग्रेस का वोट बैंक था. बांग्लादेश से लगी सीमा पर ढीली-ढाली सुरक्षा व्यवस्था होने के कारण घुसपैठ जारी रही। इस बीच नेल्ली नरसंहार ने उस आंदोलन का सांप्रदायिक और वीभत्स रूप भी उजागर किया। उस नरसंहार में अल्पसंख्यक समुदाय के औरतों-बच्चों को काट डाला गया था। उनके बाद प्रधानमंत्री बने राजीव गांधी ने 1985 में असम समझौता किया. असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर की परिकल्पना उसी प्रक्रिया का परिणाम है. इसके मुताबिक जिनके नाम राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर में नहीं दर्ज होंगे, उन्हें भारत का नागरिक नहीं माना जायेगा. इसमें विदेशी नागरिकों की पहचान करके उन्हें बाहर करने का निर्णय लिया गया। लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति के अभाव और बांग्लादेश से इस तरह का कोई समझौता न होने के कारण वह काम हो नहीं पाया।



मौजूदा सरकार ने सोमवार को जो राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर जारी किया है, उसमें 40 लाख से ऊपर लोगों के नाम नहीं हैं. उनके परिवारों को जोड़ा जाए तो यह संख्या एक करोड़ से ज्यादा होगी. ऐसा बताया जा रहा है कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर से बाहर किये गए 40 लाख लोगों में से ज्यादातर भारतीय नागरिक हैं. इनमें हिंदू और मुसलमान दोनों शामिल हैं. एक राज्य में इतनी बड़ी संख्या में लोगों को असुरक्षा की स्थिति में डाल देना बताता है कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर तैयार करने में कर्तव्य का सही तरह से निर्वाह नहीं किया गया है. ऐसा लगता है कि सरकार को समस्या के समुचित समाधान के बजाय चुनावी फायदे के लिए राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर जारी करने की जल्दी थी. इस आवश्यक कार्य को गैर-राजनीतिक तरीके से किया जाना चाहिए था. लेकिन भाजपा नेतृत्व ने वैसी परिपक्वता का प्रमाण नहीं दिया.



भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अध्यक्ष अमित शाह राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के प्रकाशन को पराक्रम की तरह पेश कर रहे हैं. पश्चिम बंगाल के भाजपा प्रभारी कैलाश विजयबर्गीय असम के बाद पस्श्चिम बंगाल पर धावा बोलने की शैली में बयान दे रहे हैं. अमित शाह ने पूरे मसले को राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़ने की बेजा बयानबाजी संसद में की है. भाजपा नेताओं की इस तरह की गैर-जिम्मेदाराना बयानबाज़ी से इस मुद्दे पर गृहमंत्री राजनाथ सिंह द्वारा दिया गया शुरूआती संतुलित बयान निरर्थक हो गया है. सत्तारूढ़ पार्टी और उसके अध्यक्ष को समझना चाहिए कि  राष्ट्रीय सुरक्षा पर खतरा असम में राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के नाम पर पूरे देश में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण करने की उनकी मंशा से है. दरअसल, देश की इस पुरानी और जटिल समस्या पर भाजपा की निगाह लंबे समय से थी. केंद्र और राज्य में सत्ता में बैठने के बाद उसने रजिस्ट्रार जनरल आफ इंडिया और जनगणना आयुक्त के कार्यालय का इस्तेमाल कर उसे ऐसा रूप दिया है कि उस पर लंबे समय तक साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति की जा सके. साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के रास्ते पर भाजपा का तात्कालिक लक्ष्य 2019 के लोकसभा चुनाव हैं. हिंदी क्षेत्र में विपक्षी दलों की एकजुटता से भाजपा मध्यावधि चुनाव हार चुकी है. उसकी भरपाई वह पूर्वोत्तर और पश्चिम बंगाल से करना चाहती है.



हालांकि सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में होने वाले नागरिकों के पहचान के इस कार्यक्रम में न्यायालय ने हस्तक्षेप करते हुए यह जरूर कहा है कि यह सूची अंतिम नहीं है बल्कि एक मसविदा है और इसके आधार पर कोई कार्रवाई नहीं होनी चाहिए। चुनाव आयोग ने भी कहा है कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर लोगों के मतदाता अधिकार को बाधित नहीं करेगा. लेकिन इस संवेदनशील मुद्दे पर जो राजनीति की जा रही है उसे न्यायालय कैसे रोक सकता है? जबकि सेनाध्यक्ष जनरल विपिन रावत भी राजनीतिक बयान देकर वहां हस्तक्षेप कर चुके हैं। यह सत्तारूढ़ पार्टी सहित सभी पार्टियों के नेतृत्व की जिम्मेदारी है. सोशलिस्ट पार्टी देश के राजनैतिक नेतृत्व से अपील करती है कि इस संवेदनशील मुद्दे पर वोट की राजनीति करने के बजाय मिल कर सुनिश्चित करें कि एक भी भारतीय नागरिक राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर से बाहर नहीं रहे. चाहे वह किसी भी प्रदेश का रहने वाला हो. राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर तैयार करते वक्त यह जिम्मा स्वयं नागरिकों का था कि वे साबित करें कि भारत के नागरिक हैं, जबकि संयुक्त राष्ट्र यह जिम्मेदारी राज्य पर भी डालता है। दूसरे, अवैध रूप से रहने वाले बंग्लादेशी नागरिकों, चाहे वे हिंदू हैं या मुस्लमान, पर भारतीय नागरिकता कानून और संयुक्त राष्ट्र (यूएनओ) के प्रावधानों की रोशनी में कार्रवाई करें.



सोशलिस्ट पार्टी का मानना है कि भारत को पूरा हक है कि वह अवैध तरीके से घुस आए लोगों की पहचान करे. अगर संभव है तो उन्हें उनके देश वापस भेजे, अगर नहीं संभव है तो उन्हें परमिट देने या नागरिकता देने पर विचार करे। इस बारे में नागरिकता संशोधन विधेयक 2014 में गैर-मुस्लिमों को नागरिकता देने की व्यवस्था तो है, लेकिन मुस्लिमों के लिए नहीं है। भारत संयुक्त राष्ट्र का सदस्य है. संयुक्त राष्ट्र का उद्देश्य 2024 तक दुनिया से नागरिकों की राज्यविहीनता समाप्त करना है। अगर इतनी बड़ी संख्या में लोगों को राज्यविहीन किया जाएगा तो इससे एक अंतरराष्ट्रीय समस्या पैदा होगी। 'विश्वगुरु' और 'वसुधैव कुटुंबकम' का दावा करने वाले भारत को इस समस्या पर सांप्रदायिक नजरिए से नहीं, संवेदनशील मानवीय नज़रिए से विचार करना चाहिए। इसमें सभी दलों की राय लेनी चाहिए, सुप्रीम कोर्ट को संविधान और संयुक्त राष्ट्र के चार्टर के अनुरूप निर्णय देना  चाहिए। 





डॉ. प्रेम सिंह
अध्यक्ष
सोशलिस्ट पार्टी (इंडिया)

Tuesday 31 July 2018

प्रेमचंद : एक दौर


    उर्दू और हिन्दी के महान भारतीय लेखक प्रेमचंद का जन्म आज के दिन 31 जुलाई 1880 में हुआ था इनका जन्म स्थल लमही ग्राम, वाराणसी , उत्तर प्रदेश में हुआ था। प्रेमचंद का हिन्दी साहित्य में जो योगदान हैं वह अतुल्यनीय हैं। उनके हिन्दी उपन्यास में दिए योगदान के कारण उन्हें उपन्यास सम्राट की उपाधि दी गई हैं। उन्होंने हिंदी में यथार्थवाद की शुरुआत की। प्रेमचंद ने सामाजिक विषयों पर रचनाएँ की जो सीधे समाज की व्यवस्था पर चोट करती है । वह विधवा - विवाह के समर्थक थे तथा उन्होंने अपना दूसरा विवाह अपनी प्रगातिशील परंपरा के अनुरूप बाल- विधवा शिवरानी देवी से किया । प्रेमचंद ने अपनी रचनाओं से हिंदी कहानी और उपन्यास की एक ऐसी परंपरा का विकास किया जिसनें पूरी सदी के साहित्य का मार्गदर्शन किया । वह संवेदनशील लेखक , कुशल वक्ता , विद्वान संपादक तथा सचेत नागरिक थे। उनकी सभी पुस्तकों के अंग्रेजी व उर्दू रुपांतरण तो हुए ही हैं , साथ  ही चीनी , रुसी आदि अनेक विदेशी भाषाओं में उनकी कहानियाँ लोकप्रिय हुई हैं। प्रेमचंद द्वारा रची गई कहानियाँ व उपन्यास अगामी पीढ़ी के लिए प्रेरणा श्रोत हैं।


                            अंजली चौहान

संसद मानसून सत्र 26 जुलाई 2018

   गृह मंत्री राजनाथ सिंह लोकसभा में भारतीय दंड संहिता , भारतीय साक्ष्य अधिनियम,1872, आपराधिक प्रक्रिया संहिता , 1973 में संशोधन और यौन अपराध अधिनियम से बच्चों का संरक्षण में संशोधन के लिए एक विधेयक आगे बढ़ाएगें ।
 केंद्रीय महिला एंव बाल विकास मंत्री मेनका गांधी के द्वारा लोकसभा में 26 जुलाई 2018 को एंटी तस्करी विधेयक पेश किया गया ,जो मानव तस्करी के पीड़ितों की रक्षा और पुनर्वास के समर्थन में हैं तथा अपराधियों पर मुकदमा चलाता हैं। यह विधेयक व्यक्तियों की तस्करी ( रोकथाम , संरक्षण व पुनर्वास) मामलों की जाँच के लिए एक राष्ट्रीय एंटी - ट्रैफिकिंग ब्यूरो की स्थापना के लिए प्रस्तुत किया गया है। मेनका गांधी द्वारा पूछा गया कि "मानव तस्करी एक सीमा तक कम अपराध है। विशेष अपराधों पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है। जब हम महिलाओं और बच्चों को  माल की तरह बेचें जातें हैं तो हम चुप रह सकतें हैं? "आइए हम इस बिल को आज वास्तविकता के लिए लाखों पीड़ितों की रक्षा और प्रदान करने के लिए एक वास्तविकता बनातें हैं । हम सभी , विशेष रूप से सबसें कमज़ोर एक महिला और बच्चों को उत्तरदायी है। आज हमारें पास पहुँचने का मौका है उन्होंने उन कानूनों की गारंटी दी जो उनकें अधिकारों की गांरटी देतें हैं। उन्होंनें सदस्यों से बिल का समर्थन कर उसे पास काराने का आग्रह किया।
 बिल के समर्थन में नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी दृढ़ता से खड़े हुए ।
 शाशि थरुर ने एंटी तस्करी बिल की 'कमियां ' बताई और इसलिए चर्चा के लिए एक संसदीय स्थायी समिति को संदर्भित किया जाना चाहिए।


                                 अंजली चौहान

Sunday 29 July 2018

तनाव

जब परेशानी और तनाव
एक साथ होता है
तब आंखें नम नहीं होतीं, जलती हैं
उसी तरह जब
असंवेदनशीलता और हिंसात्मकता
एक साथ होती है
तब देश जलता है
सोचो!..

                       Saurabh mishra

भारत के बड़े नोट नेपाल में अवैध: इंडो-नेपाल मित्रता खतरे में

2016 में हुए विमुद्रीकरण के कारण भारत के विदेशी संबंध पहले ही खराब होते दिखायी दिए थे। नोटबंदी से रातों रात 500 और 1000 के नोट अवैध कर दिए ...