Monday 16 July 2018

इंजीनियर की नौकरी छोड़ बनी गरीब बच्चों की टीचर:शैली तोमर

        वर्तमान समय में जहाँ युवा उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद किसी बडें पद की नौकरी का सपना देखते हैं तथा उसे पूरा करने का हर सभंव प्रयास करते हैं, तो वहीं एक ऐसी शक्शियत है जिन्होंने अपनी नौकरी छोड़ स्लम बच्चों को पढ़ाने का निर्णय किया है और वो शक्शियत शैली तोमर हैं जो
एमसीए करने के बाद निजी कम्पनी में साफ्टवेयर इन्जिनियर की नौकरी करती थीं।पर जब भी वह झुग्गी- बस्ती, टैफिक सिगनल्स, मन्दिर के बाहर या और जगह बच्च्चों को भीख मांगते हुए देखती थी तो उन्हें बहुत बुरा महसूस होता था। शैली से यह देखा नहीं जाता था कि बच्चों के हाथ किताबों की जगह कटोरे है, उन्होंने सोचा की अगर वह इन वचिंत बच्चों के हाथों से भीख का कटोरा हटा कर किताबें थमा दे तो कितना अच्छा हो । इस विचार को काफी समय. तक सोचने के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी तथा बच्चों को पढ़ाने लगी। परन्तु यह कार्य उतना असान नहीं था। उन्हें शुरुआत में बहुत मुश्किलों का सामना करना पड़ा उनकी नौ माह की बेटी है जिसकी देखभाल करने के बाद जो भी समय बचता वह उस समय गरीब बच्चों को पढ़ाने जाती लेकिन जब वह झुग्गी - बस्ती मे गई तो कोई पढ़ने के लिए तैयार नहीं हुआ उनके लिए पहली चुनौती यह रही कि उन्हें बच्चों व उनके अभिभावकों को तैयार करना पड़ा और वह.इस काम मे सफल भी रही,आज जब वह पढ़ाने जाती हैं तो बच्चे पहले से किताबें लिए तैयार रहते है। शैली दिल्ली के दिलशाद गार्डन की निवासी हैं तथा वह दिल्ली के निज़ामुद्दीन बस्ती, शकूर बस्ती सहित कई दूसरी बस्तियों में हफ्तें के दो दिन पढ़ाने जाती हैंं।इस काम को करते हुए उन्हें दो साल का समय हो गया है और जो बच्चे अपना नाम तक नहीं लिख पाते थे वह आज किताबें पढ़ते हैं कविता, कहानियां लिखा करते हैैं ऐसे बच्चों को पढ़ाने के लिए उन्होंने पुरानी किताबों का प्रबंध कर रखा है।उन्हें जो सन्तुष्टि नौकरी मे नहीं मिली वो इन बच्चों को पढ़ाने से मिलती है।शैली का ऐसा कार्य समाज के लिए प्रेरणा है तथा ये देश तभी विकास कर सकता है जब सभी वर्ग शिक्षित हों। आर्थिक तन्गी के वजह से आज भी बहुत बच्चे शिक्षा से दूर हैं इन्हें शिक्षित करने मे जितना हम सभी कोशिश करें उतना बेहतर होगा, अन्यथा देश के सर्वांगीण विकास की मात्र कल्पना की जा सकती है वास्तविकता मे नहीं बदला जा सकता।

अंजली चौहान

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